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मुफ्त शिक्षा का दावा खोखला साबित हुआ

शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने के एक साल बाद भी बच्चों के लिए शिक्षा पूरी तरह मुफ्त नहीं है। 20 पर्सेंट स्कूल अब भी प्रवेश शुल्क ले रहे हैं। 42 पर्सेंट स्कूल पाठ्य सामग्री के लिए पैसे वसूल रहे हैं और 30 पर्सेंट स्कूल ऐसे हैं, जिनमें पूरे साल दाखिला नहीं दिया जाता। एक साल पहले शिक्षा का अधिकार कानून इस मकसद से लागू किया गया था कि सभी बच्चों को शिक्षा मिले। लेकिन अब भी स्कूल बच्चों को अलग-अलग वजहों से एडमिशन देने से मना करते हैं। स्कूलों में बच्चों की पिटाई में भी कोई कमी नहीं आई है। गरीबी और सरकारी उपेक्षा की वजह से बच्चों की एक बहुत बड़ी आबादी शिक्षा से वंचित है। रंगपुरी पहाड़ी बस्ती महिपालपुर में रहने वाली फरजादी चाहकर भी स्कूल नहीं जा पा रही है। फरजादी के पिता कूड़ा बीनते हैं और मां घरों में नौकरानी का काम करती है। वह बताती की पिटाई में भी कोई कमी नहीं आई है। गरीबी और सरकारी उपेक्षा की वजह से बच्चों की एक बहुत बड़ी आबादी शिक्षा से वंचित है। रंगपुरी पहाड़ी बस्ती महिपालपुर में रहने वाली फरजादी चाहकर भी स्कूल नहीं जा पा रही है। फरजादी के पिता कूड़ा बीनते हैं और मां घरों में नौकरानी का काम करती है। वह बताती कि जब मैं पहली क्लास में पढ़ती थी, तो अचानक गांव जाना पड़ा। तब स्कूल में बिना बताए मैं गांव चली गई। लौटकर आई, तो स्कूल ने कुछ कागज मांगे, जो मेरे पास नहीं थे और मेरा स्कूल छूट गया। मुझे स्कूल में दोबारा दाखिला नहीं मिला। मैं आज भी पढ़ना चाहती हूं। असलम और अकील भी शिक्षा से वंचित हैं। मधुबनी का रहने वाले असलम को उसके मामा बहला-फुसलाकर दिल्ली ले आए। यहां उसे काम पर लगा दिया, जहां उसे 12-14 घंटे काम करना पड़ता था। उसे इस बाल मजदूरी से तो आजादी मिली, लेकिन आज भी वह स्कूल जाने के लिए तरसता है। एक बच्ची ने बताया कि वह जेजे कॉलोनी के सीनियर सेकंडरी स्कूल में पढ़ती है। वहां न तो टॉयलेट का सही इंतजाम है और न ही पानी की व्यवस्था। उसने कहा कि स्कूल के भीतर बाहर के लड़के घुस आते हैं और छेड़छाड़ करते हैं। एक बच्चे ने बताया कि मुझे जब सभी स्कूलों ने एडमिशन देने से मना कर दिया, तो मैं एक एनजीओ के स्कूल में पढ़ने लगा।

आरटीई कानून लागू होने के एक साल बाद भी एक चौथाई बच्चे स्कूल से बाहर हैं, जबकि सरकार कहती है कि बच्चों को स्कूल लाने के विभिन्न प्रयास किए गए। मध्य प्रदेश, यूपी, बिहार, राजस्थान, झारखंड सहित नौ राज्यों में मुफ्त शिक्षा अधिकार लागू ही नहीं हो पाया है। सर्वे में पाया गया कि 24 पर्सेंट बच्चे स्कूल से बाहर हैं। 17 पर्सेंट बच्चों को पाठ्य सामग्री नहीं दी गई है। 50 पर्सेंट स्कूलों में स्कूल प्रबंधन समिति ही नहीं बनी है। 16 पर्सेंट स्कूलों में पीने के साफ पानी का इंतजाम नहीं है। 33 पर्सेंट स्कूलों में अलग से टॉयलेट की व्यवस्था नहीं है। यूपी और झारखंड में अब भी राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग नहीं बने हैं।

क्राई संस्था की सीईओ पूजा मारवाह ने कुछ समय पहले मुंबई में एक सेमीनार में बताया था कि सिर्फ दस राज्यों ने ही अपने यहां आरटीई कानून को अंतिम रूप दिया है। उन्होंने कहा कि मुफ्त और गुणवत्तायुक्त शिक्षा देने वाले स्कूलों के अभाव में बाल मजदूरी में भी इजाफा होता है।

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