3.6.09

आतंक के बादल बरसने से पहले

शिरीष खरे
मुंबई में मानसून के बादल दस्तक दे चुके हैं लेकिन नेताजी-नगर के लोग नए आशियानों की खोज में घूम रहे हैं। 29 मई की सुबह, ईस्टर्न एक्सप्रेस हाइवे के पास वाली इस झोपड़पट्टी के करीब 250 कच्चे घर तोड़ दिये गए। मुंबई नगर-निगम की इस कार्यवाही से करीब 2,000 गरीब लोग प्रभावित हुए। पुलिस ने झोपड़पट्टी हिंसक कार्यवाही में 10 महिलाओं सहित कुल 17 लोगों को गिरफ्तार किया। कई महिलाएं पुलिस की लाठी-चार्ज से घायल भी हुईं। मुंबई में बादलों के पहले यह सरकार का आंतक है जो मनमानी तरीके से एक बार फिर गरीबों पर बेतहाशा बरस रहा है।
पुलिस की इस बर्बरता को देखते हुए ‘घर बचाओ घर बनाओ आंदोलन’ ने ‘महाराष्ट्र राज्य मानव अधिकार आयोग’ को तुरंत एक पत्र भेजा और पूरे मामले के बारे में बताया। आंदोलन ने इसे मानव अधिकारों का घोर उल्लंघन माना और आयोग से हस्तक्षेप का आग्रह किया।

29 मई
तारीख नेताजी-नगर के रहवासी हमेशा याद रखेंगे। यह लोग सुबह की चाय पीकर फुर्सत भी नहीं हो पाए कि प्रशासन ने बुलडोजर के साथ बस्ती पर हमला बोल दिया। यह हमला अचानक और बहुत तेज था, इसलिए किसी को संभलने का मौका नहीं मिला। देखते-देखते बस्ती के सैकड़ों घर एक के बाद एक ढ़ह गए। प्रशासन ने बस्ती को मैदान में बदलने की रणनीति पहले ही बना ली थी। इसलिए झोपड़पट्टी तोड़ने वाले दस्ते के साथ पुलिस ने बिखरी गृहस्थियों को आग भी लगाना शुरू कर दिया। इस दौरान प्रेम-सागर सोसाइटी के लोगों ने उनकी हरकतों को कैमरों में कैद कर लिया। यह लोग अब प्रशासनिक अत्याचार के खिलाफ अहम गवाह बन सकते हैं। साथ ही उनके द्वारा खींची गई तस्वीरों को भी सबूत के तौर पर पेश किया जा सकता है।

29 मई को 12 बजते-बजते पूरी बस्ती का वजूद माटी में मिल चुका था। इधर बड़े-बूढ़ों के साथ उनके बच्चे सड़कों पर आए। उधर पंत-नगर पुलिस स्टेशन में बंद महिलाओं को शाम तक एक कप चाय भी नहीं मिली। लाठी-चार्ज में बुरी तरह घायल डोगरीबाई को कुछ महिलाएं घाटकोपर के राजावाड़ी अस्पताल लेकर पहुंचीं थी। लेकिन पुलिस ने उन सभी को गिरतार करके पंत-नगर पुलिस स्टेशन में कैद कर दिया। यहां ईलाज की सही व्यवस्था न होने से डोगरीबाई की हालत गंभीर हो गई। रात होने के पहले भूखे, प्यासे और घायल लोगों के झुण्ड के झुण्ड खाली जगहों के नीचे से अपने घर तलाशने लगे। उन्हें अब भी मलवों के नीचे कुछ बचे होने की उम्मीद थी। लेकिन बेरहम बुलडोजर ने खाने-पीने और जरूरत की सारी चीजों को बर्बाद कर डाला था। थोड़ी देर में ही घोर अंधियारा छा गया। अब बरसात के मौसम में यह लोग सिर ढ़कने के लिए छत, खाने के लिए रोटी और रोटी के लिए चूल्हे का इंतजाम कहां से करेंगे ?
देश का मानसून मुंबई से होकर जाता है। लेकिन मुंबई नगर-निगम, महाराष्ट्र सरकार के लोक-निर्माण विभाग के साथ मिलकर नेताजी-नगर जैसी गरीब बस्तियों को ढ़हा रहा है। प्रदेश-सरकार के मुताबिक जो परिवार कट-आफ की तारीख 1-1-1995 के पहले से जहां रहते हैं, उन्हें वहां रहने दिया जाए। इसके बावजूद नेताजी-नगर के कई पुराने रहवासियों को अपने हक के लिए लड़ना पड़ लड़ना पड़ रहा है
आतंक के बादल
नगर बस्ती नाले के बाजू और मीठी नदी के नजदीक है। शहर के अहम भाग पर बसे होने से यह जगह बहुत कीमती है। इसलिए आसपास के करीब 60 एकड़ इलाके पर बड़े बिल्डरों की नजर टिकी हुई है। भीतरी ताकतों के आपसी गठजोड़, आंतक के सहारे बस्ती खाली करवाना चाहता है। लेकिन प्रशासन को भी बस्ती तोड़ने की इतनी जल्दी थी कि उसने सूचना देना ठीक नहीं समझा। पूरी बस्ती को ऐसे कुचला गया जिससे ज्यादा से ज्यादा नुकसान हो। अगर प्रशासन चाहता तो नुकसान को कम कर सकता था। लेकिन उसने पुलिस को आगे करके लाठी-चार्ज की घटना को अंजाम दिया।
इस बस्ती के रहवासी कानूनी तौर पर मतदाता है। इसलिए उन्हें जीने का अधिकार है। इसमें जमीन और बुनियादी सुविधाओं वाले घर के अधिकार भी शामिल हैं। किसी भी ओपरेशन में पुलिस अकारण हिंसा नहीं कर सकती है। अगर किसी का घर और उसमें रखी चीजों को तोड़ा-फोड़ा जाएगा तो लोग बचाव के लिए आएंगे ही। नेताजी-नगर के रहवासी भी अपने खून-पसीने की कमाई से जोड़ी ज्यादाद बचाने के लिए आए थे। बदले में उन्हें पुलिस की मार और जेल की सजा भुगतनी पड़ी।
‘घर बचाओ घर बनाओ आंदोलन’ के सिंप्रीत सिंह ने ‘महाराष्ट्र राज्य मानव अधिकार आयोग’ से आग्रह किया है कि- ‘‘स्लम एक्ट और अन्य दूसरे नियमों के आधार पर इस मामले की जांच की जाए। सरकार पुलिस की लाठियों से घायल महिलाओं का ईलाज करवाए। पीड़ित परिवारों को उचित मुआवजा मिले और दोषी पुलिसकर्मियों पर कड़ी कार्यवाही हो।’’

इन दिनों
मुंबई में गरीबों को उनकी जगहों से हटाने की घटनाओं में तेजी आई है। शहर की जमीन पर अवैध कमाई के लिए निवेश किया जा रहा है। शहरी जमींदार ऊंची इमारतों को बनाने के लिए हर स्केवेयर मीटर जमीन का इस्तेमाल करना चाहते हैं। अब यह कारोबार अथाह कमाई का जरिया बन चुका है। इस मंदी के दौर में भी जमीनों की कीमत काफी ऊंची बनी हुई हैं। इसकी वजह सस्ती दरों पर कर्ज किसानों की बजाय कारर्पोरेट को दिया जाना है।
महाराष्ट्र ने अपनी 30 हजार एकड़ जमीन प्राइवेट को दी है। सीलिंग कानून के बावजूद ऐसा हुआ। 1986 को प्रदेश सरकार यह प्रस्ताव पारित कर चुकी थी कि- ‘‘अतिरिक्त जमीन का इस्तेमाल कम लागत के घर बनाने में किया जाएगा। 500 मीटर से ज्यादा जमीन तभी दी जाएगी जब उसका इस्तेमाल 40 से 80 स्केवेयर मीटर के लेट्स बनाने में होगा।’’ लेकिन मुंबई के हिरानंदानी गार्डन में बिल्डर को 300 एकड़ की बेशकीमती जमीन सिर्फ 40 पैसे प्रति एकड़ के हिसाब से दी गई। इस जमीन पर ऐसा ‘स्विटजरलैण्ड’ खड़ा किया गया जिसमें सबसे कम लागत के एक मकान की कीमत सिर्फ 5 करोड़ रूपए है।
साभार : विस्फोट.कॉम
लिंक : http://www.visfot.com/index.php/jan_jeevan/982.html

2 टिप्‍पणियां:

admin ने कहा…

सच में, मुम्बई के लिए बादल किसी आतंक से कम नहीं।
कृपया वर्ड वेरीफिकेशन हटा दें, सुविधा होगी।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

निर्मला कपिला ने कहा…

mumbai he kyaa har jagah hi ye haal hai magar mubai kuchh adhik hai is jankari ke liye dhanyvad