9.4.09

रोशनी से रु-ब-रु होती पारधी जमात

शिरीष खरे
बीड़। पारधी लोग घनघोर जंगल में रहते थे। उन्हें रोशनी चाहिए थी। लेकिन दिया नहीं रखते थे। एक आहट मिलते ही डरते कि पुलिस तो नहीं। पारधी लोग गाय के ऊपर गृहस्थी का बोझ लटकाते। चोरी-छिपे भटकते। इस तरह उनकी कई पीढ़ियां गुजरी। उन्हें ‘इंसान’ नहीं ‘चोर’ ही कहा जाता रहा। वह ‘चोर’ हैं या नहीं। और हैं भी तो क्यों-यह किसी ने न जाना। एक रोज इन्हें चोर’ नहीं ‘इंसान’ कहा गया। इन्हें भरोसा न हुआ। धीरे-धीरे होने लगा। तब आसमान, धरती और रास्ते तो जहां के तहां रहे. मगर इनकी दुनिया बदलने लगी।
यह मराठवाड़ा का बीड़ जिला है। यहां ‘चाईल्ड राईटस एण्ड यू’ और ‘राजार्षि शाहु ग्रामीण विकास’ संस्थाएं सक्रिय हैं। इन दोनों ने मिलकर स्कूल और जमीन के रास्तों से बदलाव लाया है। बदलाव का पहला बीज 21 साल पहले ही गिर चुका था।
एक रोज पाथरड़ी तहसील में चोरी हुई। कई महीने बीते लेकिन चोर का पता नहीं लगा। बीड़ से करीब 100 किलोमीटर दूर आष्टी तहसील के चीखली में रहवसिया पारधी का परिवार ठहरा हुआ था। पुलिस ने उसे ही चोरी के केस में अंदर डाल दिया। इधर रहवसिया को दो महीनों की जेल हुई। उधर उसके परिवार को ऊंची जाति वालों ने जगह छोड़ने के लिए धमकाया। रहवसिया ने बताया- ‘‘परिवार के पास पहुंचते ही मुझे अपने 12 साथियों के साथ रस्सी से बांध दिया। हमें बोला गया कि हम गांव के लिए ‘अपशगुन’ हैं। आग लगाने की बात सुनते ही मैं भाग निकला। 4 किलामीटर दौड़ते हुए संगठन के आफिस पहुंचा। वहां से 7 टेम्पों में करीब 300 कार्यकर्ता नारा लगाते हुए यहां आए। तब ऊंची जाति वाले अपने घरों में ताला लगाकर भागे।’’
आप को लग रहा होगा कि पुलिस या ऊंची जाति वाले बिना वजह ऐसा क्यों करेंगे ? इस बारे में राजार्षि शाहु ग्रामीण विकास’ के बाल्मीक निकालजे ने बताया- ‘‘कभी यह जमात शासन और समाज की व्यवस्था में अहम कड़ी मानी जाती थी। तब यह राजा के शिकारी या खुफिया विभाग में होते थे। युद्धों में इनके राजा हार गए। लेकिन पारधियों ने पहले निजाम और फिर अंगेजों से आखिरी तक हार नहीं मानी। यह देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी साबित हुए। यहां के लोग इसकी कथाएं सुनाते हैं। जब अंग्रेज छापामारी युद्धशैली से परेशान हो गए तो उन्होंने ‘जन्मजाति गुनहगार कानून, 1873’ बनाया और पारधी को ‘गुनहगार जमात’ में रख दिया।’’ 60 साल पहले अंग्रेज चले गए लेकिन धारणाएं नहीं गईं। तभी तो पारधी जमात आज तक गुनहगार बनी हुई है।
इसी धारणा की वजह से ही चीखली के ऊंची जाति वालों ने पारधियों को हटाने के लिए पूरी ताकत का इस्तेमाल किया था। वह तब के प्रधानमंत्री राजीव गांधी के पास तक चले गए। लेकिन राजीव गांधी ने दो टूक कह दिया कि पारधी देश के नागरिक हैं और उन्हें हटाया नहीं जा सकता। इसके बाद गांव के दबंगों और पारधियों के बीच 5 साल तक संघर्ष चला। इस बीच पारधी बस्ती में 4 बार हमले हुए। लेकिन कोर्ट में केस पहुंचने के बाद हमले बंद भी हो गए।
दूसरी तरफ पुलिस का अत्याचार जारी रहा। 2002 को राजन गांव में वास्तुक काले की पत्नी विमल खेत में काम कर रही थी। तब इंस्पेक्टर ने आकर बताया कि उसने सोने की पट्टी चुराई है इसलिए थाने चलना होगा। विमल के विरोध करने पर इंस्पेक्टर बोला यह औरत तेज लगती है और सोने की पट्टी इसकी साड़ी के पल्लू में है। आखिरकार आज के दु:शासन ने दोपद्री का पल्लू खीच डाला। 2003 को धिरणी के गोकुल को चोरी के शक में पकड़ लिया। वह जिस सुबह छूटा उसी शाम फांसी लगाकर मर गया। इसे पारधी युवकों की मानसिक स्थिति के तौर पर देखा जाना चाहिए।
'राजार्षि शाहु ग्रामीण विकास’ के सतीश गायकवाड़ ने बताया- ‘‘पुलिस थाने से कचहरी तक कई तरह की मानसिक और आर्थिक उलझनों से गुजरना होता है। इन हालातों से आपराधिक प्रवत्तियां पनपती है। मतलब पहले जो ‘इंसान’ था उसे व्यवस्था ‘चोर’ बनाती है। इसलिए अब यह व्यवस्था का ही फर्ज है कि उसे ‘चोर’ से ‘इंसान’ बनाया जाए। इसके लिए संगठन ने ‘जोर का झटका जोर से’ लगाने की रणनीति अपनायी है।’’ इन दिनों संगठन कानूनी हक और योजनाओं का सहारा ले रहा है। कुछ उदाहरण पेश हैं-
जब सोलेवाड़ी गांव में चोरी हुई तब पुलिस ने तवलबाड़ी के हरन्या और उसके 2 लड़कों को पकड़ लिया। पुलिस 17 किलोमीटर दूर चैभानिम गांव में हरन्या की लड़की नचाबाई के घर भी पहुंची। नचाबाई के विरोध करने पर पुलिस ने मारपीट की जिसमें उसका पैर टूट गया। संगठन ने इंस्पेक्टर एम.यू। कुलकर्णी और उसके साथियों के खिलाफ ‘अत्याचार प्रतिबंधक कानून’ के तहत मुकादमा दायर किया। इसके बाद पुलिस ने माफी मांगी। इसी तरह चीखली से 2 किलामीटर दूर पारगांव के राजेश काले ने अपने खेत से 60 बोर मूंगफलियां उगाई। वह अपना अनाज बेचने करीब 50 किलोमीटर दूर अहमदनगर पहुंचा तो पुलिस ने उस पर छापा मारा। पुलिस की मारपीट से छूटकर 3 लोग भागे और 2 पकड़े गए। इसके जबाव में संगठन ने आंदोलन करते हुए सरकारी विभागों के मंत्रियों के सामने आपत्तियां दर्ज की। वकीलों की मदद से पारधियों को रिहा करवाया गया। आखिरकार पुलिस ने कहा कि वह ठोस सबूत के बिना पारधियों को गिरफ्तार नहीं करेगी।
चीखली में आज 29 पारधी घरों में करीब 300 लोग रहते है। इन्होंने 70 वोटों की ताकत बटोरी है। यह पिछले 15 साल से वोट देते आ रहे हैं। इन्होंने अपने बीच से ही उमेश काले को वार्ड मेम्बर बनाया है। उमेश काले ने बताया- ‘‘हमने थोड़ी-थोड़ी जमीन खरीदी। इससे रहवासी होने के सबूत मिल गए और हमारे नाम वोटरलिस्ट से जुड़ गए। इसलिए आज सभी परिवार बीपीएल और राशनकार्ड की लिस्ट में भी हैं। हम हर पार्टी का दबाव रहता है। लेकिन वोट का फैसला जाति पंचायत में करते हैं। हम अपनी पंचायत में कुछ बुर्जुगों को मुखिया बनाते हैं। उनके सामने एक-एक समस्याएं रखते हैं। जो बात पक्की हुई उसे सामूहिक तौर पर मानते हैं।’’
‘राजार्षि शाहु ग्रामीण विकास’ ने 18 साल पहले पारधी बच्चों को स्कूल में दाखिला लेने के लिए अभियान छेड़ा था। इसका नतीजा यह हुआ कि रविवार भोंसले और बालुंज जिला पंचायत में आडिटर हैं। रविवार का चचेरा भाई रवि भोंसल पुलिस में है। रहवसिया का बड़ा बेटा इमारत भी राज्य परिवहन बस में कण्डेक्टर हो चुका है। नवनाथ काले और सर्विस काले कांस्टेबल हैं। कुल मिलाकर 8 सरकारी नौकरियों में हैं जिसमें से 2 महिलाएं हैं। 1998 में ‘चाईलण्ड राईटस एण्ड यू’ की मदद से चीखली के पारधी बच्चों के लिए ‘गैर औपचारिक केन्द्र’ खोला गया। इसके बच्चे अब 8वीं, 9वीं, 10वीं होते हुए कालेज के दरवाजों पर खड़े हैं।
‘चाईलण्ड राईटस एण्ड यू’ के अनिल जेम्स ने बताया- ‘‘हमारा काम बच्चों को सपना देना और उसे पूरा करने में मददगार बनना है। पारधियों में गजब की बौद्धिक, सांस्कृतिक और खेल प्रतिभाएं हैं। उनकी प्रतिभाओं को विकसित करने की कोशिश चल रही है। पारधियों को कुशल बनाकर ही उनकी पहचान बदली जा सकती है।’’
1995 के बाद संगठन के सहयोग से इस इलाके में 1200 से अधिक पारधियों के लिए कास्ट सर्टिफिकेट बनवाए गए। आज वह खुद ही कास्ट सर्टिफिकेट बनवाते लेते हैं। 2006 में सरकार ने इस इलाके के पारधियों को रोजगार देने के लिए 21 लाख रूपए की योजना बनायी है। इससे उन्हें खाद, खेती, पशुपालन और दुकानों के लिए वित्तीय मदद मिलेगी।
चीखली से लौटते वक्त हसीना काले अपने बच्चों के साथ बाहर आई। उन्होंने अपनी अंगुलिया से बदलाव की गिनती भी सुनाई- ‘‘पहले काम की आदत नहीं थी और अब अपने खेतों से फसल उगाते हैं। पहले घर में चूल्हा नहीं जलता था और अब खाना खुद पकाते हैं। सबके साथ बैठते हैं। एक ही जगह पर रहते हैं। घरों में बिजली जलती है। पुलिस से सीधे बतियाते हैं।’’ उनके साथ खड़े पारधी अभिमन्युओं ने कहा- हम पुलिस के पीछे नहीं भागना चाहते। हम पढ़-लिखकर ऐसा करना हैं कि पुलिस खुद हमें सेल्युट मारे।’’
यहां के पारधी अभिमन्यु अब चक्रव्यूह तोड़ने को बेकरार हैं।